दीपोदान की आड़ में दिवाली मनाते अंबेडकरवादी बुद्धिजीवी।



*पिछले कुछ वर्षों से दिवाली के अवसर पर दीपदान उत्सव को लेकर खूब शोर मचाया जा रहा है कि यह त्योहार बौद्ध धर्म से संबंध रखता है। तथाकथित चंद बौद्धों का मानना है कि सम्राट अशोक महान ने 84000 धम्मस्कंधों की स्थापना करके कार्तिक अमावस्या के दिन उनका उद्घाटन करके उत्सव मनाया था और इस दिन दीपक जलाए थे। इस बारे में इन विद्वानों से चर्चा हुई तो उन्होंने दावा किया कि इतिहास कोई लड्डू नहीं है जिसे उठाकर मुंह में डाला जाए। इतिहास बिखरे हुए छोटे-छोटे बुंदियों की तरह होता है जिसे मिलाकर लड्डू बनाया जाता है। जब लड्डू पूरा नहीं होता तो विद्वान अपने हिसाब से पूरा करने की कोशिश करता है। इस प्रकार के जवाब इन लोगों ने दिए उन्होंने अनेक धर्म ग्रंथों के उदाहरण देकर बरगलाने की कोशिश की। दीपदान की आड़ में बहुजन समाज में खुद को बुद्धिजीवी माने बैठे लोगों ने दिवाली मनाने का प्रपंच रचा है। अलग-अलग क्षेत्र में शोध कर रहे शोधार्थियों से चर्चा हुई उन्होंने बताया की बुद्धिज्म में दीपदान उत्सव के नाम पर कोई भी संदर्भ नहीं है। विद्वान् भिक्खु चंदीमां ने बताया कि मैंने बुद्ध धम्म के सभी ग्रंथ पढ़े हैं त्रिपिटक प़ढे हैं उनमें भी कहीं पर भी सम्राट अशोक द्वारा इस दिन दीपक जलाने का कोई भी संदर्भ नहीं मिला। भन्ते डॉ करुणाशील राहुल ने बताया कि बुद्ध धम्म में कहीं भी दीपदान का जिक्र नहीं है। तो हम अब मिलावट नहीं होने देंगे।*

*बौद्धों में पूर्णिमा का प्रचलन है न कि अमावश्या का। ये चंद लोग योजना बनाकर मिलावट करके इतिहास का झूठा लड्डू खाने के पीछे पड़े हैं। शोधार्थियों में डॉ विकाश सिंह ने भी सारे ग्रंथ खंगाले लेकिन तथागत बुद्ध के आगमन और सम्राट अशोक द्वारा स्थापित 84000 स्तूपों के उद्घाटन पर दीप जलाए ऐसा कहीं भी संदर्भ नहीं मिला है। सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों ने दीपदान पर खूब शोर मचाया है। इन लोगों से खूब बहस हुई कि अगर आप लोगों के पास दीपक जलाने से संबंधित कोई संदर्भ है तो इसका पेज नंबर के साथ हमें लाइन भी दिखाने की कृपा करें। इन्होंने दीपवंश और महा वंश का नाम लिया। डॉक्टर परमानंद मुंबई के पास दीपवंश और महावंश हैं जो श्रीलंका द्वारा प्रकाशित है। उन्होंने बताया कि किसी भी ग्रंथ में दीपदान के बारे में कोई जानकारी नहीं फिर भी यह विद्वान कुतर्क के माध्यम से अपनी झूठी बातों को स्थापित करने पर जुटे हुए हैं। महायानी ट्रेडीशन में भी दीपदान के बारे में कोई संदर्भ नहीं मिला।*

*अगर दीपदान का बौद्धों से संबंध होता तो बाबा साहब डॉ अंबेडकर इस बारे में जरूर प्रचार करते। लेकिन बाबा साहब ने इस बारे में कोई चर्चा नहीं की। विद्वानों की इसी मानसिकता के कारण लोगों ने गोवर्धन की पूजा की आड में बाबा साहब की प्रतिकृति बनाई और उसकी पूजा की। दीपदान की आड़ में लोगों ने बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर की प्रतिमा लगाकर मिठाई पैसे आभूषण दीपक व सिंदूर से तिलक लगाकर वही पुराना ढकोसला करने की कोशिश की। दिवाली की पूजा में केवल एक प्रतिमा बदली नजर आई बाकी सारा का सारा ढर्रा वैसा का वैसा दिखाई दीया।*

*एक तरफ बुद्धिज्म से जुड़े लोग दीपक जला रहे हैं दूसरी तरफ हिंदू धर्म से जुड़े लोग दीपक जला रहे हैं तो इन दोनों में अंतर कैसे स्पष्ट हो पाएगा। इन विद्वानों के अनुसार इस दिन दीपक जलाए गए थे तो इसका नाम दीपदान उत्सव क्यों रखा अर्थात दीपदानोत्सव न रखकर इसका नाम दीप जलान उत्सव होना चाहिए था।*

 *क्या ईद के अवसर पर कोई हिंदू भाई टोपी पहनने की जिद करता है या दिवाली के अवसर पर कोई मुसलमान भाई पटाखे फोड़ने की जिद करता है। ये तीज त्योहार पर्व उत्सव एक दूसरे के धर्म संप्रदाय के जुड़े हैं। हमारा देश भिन्न-भिन्न सभ्यता संस्कृति का देश है सभी लोग अपने तीज त्यौहार उत्सव अपने अपने हिसाब से मनाते हैं और एक दूसरे के काम में दखलंदाजी नहीं करते. क्या बौद्धों को की किसी के त्योहारों में दखलान्दजी करनी चाहिए?*

 *धन्यवादी हैं बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के जो बुद्ध धम्म स्वीकार कर के बौद्धों को नई परिपाटी दे कर गए। वरना ईद के अवसर पर ये विद्वान भी बकरे काट रहे होते और इतिहास का झूठा लड्डू खाने की दुहाई दे रहे होते। तथाकथित बुद्धिजीवियों ने बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के तीन मूल सिद्धांत educate agitate organise को उल्टा तो कर ही दिया साथ-साथ इनके अर्थ भी बदल दिए।*

*बाबा साहब कहते हैं we have no funds to maintain a machinery to render help our people and to educate agitate and organise them. अर्थात व्यवस्था को खड़ा रखने के लिए हमारे पास निश्चित धनराशि नहीं है जिससे हमारे लोगों की सहायता की जा सके उनको शिक्षित किया जा सके आंदोलित किया जा सके और उन को संगठित किया जा सके। बाबा साहब कहते हैं -शिक्षित करो,आंदोलित करो,संगठित करो। बाबा साहब ने कहीं भी अपनी पुस्तकों में ओम मणि पदमें होए न तो लिखा और ना ही इस शब्द को बोलने की कहीं दुहाई दी। फिर भी इन विद्वानों ने कुछ पुस्तकों में छाप कर बाबा साहब के मुंह से यह शब्द कहलवा दिया। तो इनकी विद्वता पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। दिवाली के अवसर पर तमाम अंबेडकरवादी अपने परिचितों को दीपदान उत्सव की बधाई देकर वाहवाही लूटते हुए संस्कृति का घालमेल करते दिखाई दिये हैं। ठीक है तुम्हारा काम दिवाली मनाएं बिना नहीं चल सकता तो आप शौक से मनाइए आप लोग आजाद हैं। लेकिन इस संस्कृति में मिलावट तो मत करो। हमें इतिहास को पढ़ते हुए फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा। अगर ये मिलावटखोर विद्वान जो क्रांति की प्रतिक्रांति की दुहाई देते हुए संस्कृति में मिलावट करके अपनी दुकानदारी चलाना चाहते हैं तो कम से कम बुद्धिज्म को तो बख्श दो। अब समाज के जिम्मेदार लोगों को ध्यान रखना होगा और सोच समझकर इतिहास पढ़ना होगा। तथा मिलावटखोर विद्वानों की विद्वता से समाज को बचाना होगा ताकि बुद्धिज्म की सभ्यता संस्कृति को बचाया जा सके ताकि शुद्धता बनी रहे।*
सन्दर्भ पुस्तक~
*बुद्धिजीवी बनाम चमचा*
संस्करण 2019
✒️ *मनी कुमार* 
मोबाइल. 9812320049

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