नागों का शिव से नहीं बल्कि गौतम बुद्ध से है संबंध.....




नागों का शिव से नहीं बल्कि गौतम बुद्ध से है संबंध.....

मुंगेर के असरगंज के ढोल पहाड़ी पर स्थित है बुद्ध की प्राचीन मूर्ति ढ़ोल पहाड़ी की गुफ़ा में बुद्धिस्ट नाग संस्कृति के इतिहास के बिखरे पड़े है,सबूत महाराष्ट्र की कन्हेरी गुफाओं के सामान यहाँ मौजूद है पंचमुख नाग मुछलिंद के साथ बुद्ध...

यहाँ कदम- कदम पर बुद्धिस्ट संस्कृति के निशान है। मुंगेर जिला के असरगंज का छोटा सा गांव ढ़ोल पहाड़ी। ढ़ोल पहाड़ी की गुफ़ा में बुद्धिस्ट नाग संस्कृति के इतिहास के कई प्रमाण बिखरे पड़े है। यहाँ कई शिलालेखो , धातु- लकड़ी - पाषाणों में, और ग्रामीणों के द्वारा उत्खननं में बौद्ध संस्कृति के महान इतिहास के लगातार सबूत मिल रहे है।

  लेकिन इतिहासकारों ने अपनी आँखे मूंद रखी है। यहाँ की पहाड़ियों पर बुद्धिस्ट लोगो की ऐतिहासिक धम्म साक्ष्य बुद्धमय नाग संस्कृति को उजागर कर रहा है। महाराष्ट्र की कन्हेरी गुफाओं की तरह पंचमुख नाग मुछलिंद के साथ गौतम बुद्ध मौजूद है।

 पंचमुख नाग मुछलिंद के साथ गौतम बुद्ध की यह प्रतिमा थोड़ी खंडित है, यहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है की यह मूर्ति गांव में खंडित अवस्था में जमीन में दफन थी, गांव के ही एक किसान को खेती करने के दौरान हल के टकराने से जमीन के अंदर किसी कीमती बस्तु होने का आभास हुआ, रात के अँधेरे में कुछ लोगों के साथ जमीन को खोदा गया तो यह मूर्ति निकली।

 बाद में इस मूर्ति को ढ़ोल पहाड़ी पर मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया गया l गौतम बुद्ध की यह मूर्ति घुमावदार बालों की लट से शोभित है l

 दोनों भोहों के मध्य बना हुआ एक छोटा सार्वतुलाकार चिन्ह है जो बुद्ध के बत्तीस गुण और लक्षणों की गणना करती है। मूर्ति का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में ऊपर उठा हुआ और बाँया हाथ आसनस्थ मूर्तियों में जाँघ पर है।

  यह बुद्ध की एक प्राचीन मूर्ति है। जिसे लोग भगवान् शंकर और महामाया को माता पार्वती मानकर पूजा करते हैं...

इतिहासकार मौन है ... आखिर कौन है पंचमुख नाग मुछलिंद ? 

 मुछलिंद के बारे में बौद्ध धर्म ग्रन्थ के अलावा ब्रिटिश म्यूजियम में रखे सिक्कों से हमें बहूत सारी जानकारी मिलती है। कहानी बौद्ध राजा शेषनाग की है जिसने विदिशा को राजधानी बनाकर 110 ई0पू0 में शेषनाग वंश की नींव डाली थी।

 शेषनाग की मृत्यु बीस सालों तक शासन करने के बाद-90 ई0पू0में हुई उसके बाद उनके पुत्र भोगिन राजा हुए। जिनका शासन--काल 90-ई0पू-से 80 ई0पू0तक था। फिर चंद्राशु ( 80 ई0पू0-50-ई0पू0) तब धम्मवर्म्मन (50-ई0पू- 40-ई0पू0) और आखिर में वंगर (40 ई0पू0--:31ई0पू0) ने शेषनाग वंश की बागडोर संभाली। शेषनाग की चौथी पीढ़ी में वंगर थे , इस प्रकार शेषनाग वंश के कुल मिलाकर पाँच राजाओं ने कुल 80 सालों तक शासन किया।
 
 इन्हीं पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में बतौर बुद्ध के रक्षक कन्हेरी की गुफाओं में दिखाया गया है। जिन बुद्ध की प्रतिमाओं के रक्षक सातमुखी नाग हैं। वे पंचमुखी नाग वाली प्रतिमाओं से कोई 350 साल बाद की हैं।

 नागवंश का ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करने पर हम जान पाते हैं कि परवर्ती नाग शासकों का राज्य सन् 712 ई. से सन् 1194 ई. तक अर्थात 482 वर्ष तक रहा। वह भारत के सभी तत्कालीन राज्यों में विशाल था।

 नाग वंशी राजा बौद्ध धम्म के अनुयाई थे। नागों ने पूरे भारत में बौद्ध धम्म का प्रचार किया । महावत्थु में भी बौद्ध नागों का उल्लेख मिलता है|
Raj Kumar shakya

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